फ़तिमा शेख पर इतिहास मौन क्यों?

      
       स्त्री शिक्षा की प्रबल पैरोकार माता सावित्रीबाई फुले की सहयोगी रही प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख पर इतिहास मौन क्यों है, आखिर इतिहासकारों से यह भयंकर चूक क्यों हुई? यह सोचनीय तथ्य है। जब रूढ़िवादी समाज में महिलाओं की शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले ने मुहिम छेड़ा तो उस मुहिम में उनका साथ देने के लिए रूढ़िवादी समाज की बेड़ियों को तोड़कर आगे आने वाली फातिमा शेख पर प्रबुद्ध समाज व इतिहासकारों को शोध करने की जरूरत है। आज हमारे पास फातिमा शेख के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, यह इतिहास की सबसे बड़ी विडंबना है। हालाकि फातिमा शेख के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी महाराष्ट्र सरकार नें अपने उर्दू की बालभारती पुस्तक के पाठ्यक्रम में शामिल किया है।

     जब सावित्रीबाई फुले व महात्मा ज्योतिबा फुले ने वंचितों व महिलाओं की शिक्षा के लिए मुहिम छेड़ा तब उन्हें समाज के रूढ़िवादी तबके की उपेक्षा झेलनी पड़ी, उस समय फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में शरण दिया, उस समय वंचितों व स्त्रियों की शिक्षा के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था तब फातिमा शेख ने इस मुहिम में सावित्रीबाई फुले का साथ दिया, सबसे ज्यादा सोचनीय विषय यह है कि फातिमा शेख को उनके ही कौम में भुला दिया गया, इससे साफ पता चलता है कि तत्कालीन मुस्लिम समाज ने फातिमा शेख का कितना साथ दिया होगा। बहुजन आंदोलन की मदद से सावित्रीबाई फुले व ज्योतिबा फुले को इतिहास में वाजिब सम्मान तो मिल गया लेकिन फातिमा शेख इतिहास के निर्मम संयोग का शिकार बन कर रह गई। नारी शिक्षा व धर्मनिरपेक्षता से जुड़े लोगों के लिए यह एक चुनौती है कि वह उस्मान शेख व फातिमा शेख के योगदान की खोजबीन कर उन्हें वाजिद सम्मान दिलाएं।

      स्त्री शिक्षा आंदोलन की अहम किरदार रही फातिमा शेख को उनकी समाज सेवा व साहस के लिए नमन!

©SUNEEL KUMAR

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