इतिहास के हांशिए पर फातिमा शेख!

इतिहास के हाशिए पर फातिमा शेख!
------------------------------------------

   जब सावित्रीबाई फुले जी ने सन 1848 में महिलाओं की शिक्षा के लिए पहला स्कूल खोला था उस समय उनके इस स्कूल खोलने में उनकी अहम सहयोगी रही फातिमा शेख आखिर इतिहास के हासिएं पर कैसे चली गई व उनके ही समाज के इतिहासकारों की नजर उनपर क्यों नही पड़ी ये सोचनीय विषय है। तत्कालीन रूढ़िवादी समाज में जब शूद्रों और स्त्रियों को शिक्षा हासिल करना वर्जित था तो सबसे पहले सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ स्त्रियों की शिक्षा के लिए मुहिम की शुरुआत की थी व पुणे में महिलाओं का पहला स्कूल खोला था। समाज की दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण उस समय इस काम के लिए उनका साथ देने वाला कोई नहीं था तब उनका साथ देने के लिए मियां उस्मान शेख व उनकी बहन फातिमा शेख आगे आई थी। सावित्रीबाई फुले जी के साथ फातिमा शेख भी बच्चियों को उनके स्कूल में सहयोगी शिक्षक के तौर पर शिक्षा दिया करती थी। रूढ़िवादी व्यवस्था के कारण जब फुले जी के पिता ने इस काम के कारण उनको अपने घर से निकाल दिया तब फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने ज्योतिबा राव फुले और सावित्रीबाई फुले को रहने व उसी में स्कूल खोलने के लिए अपना घर दे दिया और सावित्रीबाई फुले के साथ फातिमा शेख ने भी महिलाओं की शिक्षा के इस मुहिम को आगे बढ़ाया। आज इतिहास में नगण्य फातिमा शेख के बारे में इंटरनेट व गूगल पर भी कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है हां थोड़ी बहुत जानकारी महाराष्ट्र सरकार के उर्दू की बालभारती पुस्तक में मिलती है। यह प्रबुद्धजनों, लेखकों व इतिहासकारों के साथ साथ उनके समाज के भी महिलाओं की बराबरी में विश्वास रखने वाले जिम्मेदार लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती है कि फातिमा शेख जी को इतिहास में वाजिब स्थान दिलाएं व आने वाली भावी पीढ़ी को भी इसके बारे में बताए व पढ़ाएं।

   भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका व समाजसुधारक फातिमा शेख जी की जयंती पर उनके शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में दिए गए असाधारण योगदान के लिए विनम्र श्रद्धांजलि।

©सुनील कुमार 

Comments

Popular posts from this blog

आरक्षण और वंचित समाज

एक चर्चित बेमेल शादी/

बेचारा संसद