अयोध्या विवाद और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कल दिनांक 9 नवंबर 2019 को देश की सर्वोच्च अदालत ने लगभग 400 वर्षों से अधिक समय तक विवादित रहे राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले में अपना फैसला सुनाते हुए यह आदेश दिया कि विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दी जाए व अयोध्या में 5 एकड़ जमीन मुस्लिमों को मस्जिद बनाने के लिए दी जाए इसी के साथ इस बहुत पुराने धार्मिक व ऐतिहासिक मुद्दे का लगभग-लगभग अंत हो गया। इससे पहले इस धार्मिक मुद्दे को लेकर हिंदू और मुस्लिमों के द्वारा राम और बाबर के नाम पर जो खूनी होली खेली गई थी उसको इतिहास कभी माफ नहीं करेगा, आखिर धर्म के नाम पर हिंसक होना व धर्म के लिए खून बहाना कहां तक किसी धर्म में जायज है जबकि सारे धर्म यही दावे कर रहे हैं की उनका धर्म शांति व मानवता का संदेश देता हैं लेकिन अयोध्या विवाद पर जो त्रासदी भारत में हुई उसे भारत समेत सारी दुनिया ने अपनी आँखों से देखा है फिलहाल अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद इस मामले का पटाक्षेप हो जाना निश्चित प्रतीत हो रहा है।
मैंने इतिहास में पढ़ा था कि इस मस्जिद को बाबर के दीवान मीर बाकी ने 1527 ई0 में बनवाया था लेकिन यह मस्जिद बनने के समय से ही विवाद में रहा है हिंदुओं का हमेशा से मानना रहा है कि जिस जगह पर यह मस्जिद बनवाई गई वह राम जन्मभूमि है यह मस्जिद मंदिर को तोड़कर (जो कि पहले से वहां मौजूद था) बनवाई गई है ऐसा हिंदू लोगों का मानना है मैं इस बात का समर्थन भी करता हूं कि हो सकता है बाबर ने मंदिर की ही नीव पर इस मस्जिद का निर्माण करवाया हो क्योंकि लगभग सभी धर्मों का सदियों से यही इतिहास रहा है कि उनका धर्म तभी तरक्की करेगा जब तक दूसरों की धार्मिक संस्कृतियों को मिटाया नहीं जाता शायद इसी उद्देश्य से बाबर के निर्देश पर इस मस्जिद का निर्माण हुआ हो, मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नालंदा जैसे विश्व प्रसिद्ध व विशाल बौद्ध मठ को जलाए जाना यह प्रदर्शित करता है कि अपने धर्म और अपनी धार्मिक विचारधारा का विस्तार करने के लिए दूसरे की धार्मिक संस्कृतियों को मिटाना बड़ा जरूरी होता है इसी क्रम में अनेक इतिहासकारो के मुताबिक बौद्ध मठों को कुछ हिंदू ब्राह्मण शासकों द्वारा भी नुकसान पहुंचाया गया शायद इसी कारण बौद्ध धर्म जहां से शुरुआत हुई वही उसका अस्तित्व ना के बराबर है इस कथन को यहाँ पर बताना इसलिए जरूरी है की अगर राम मंदिर पर फैसला मुस्लिमों के पक्ष में नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनके साथ इंसाफ नहीं हुआ इस बात को मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग को बेशक मानना चाहिए कि तत्कालीन मुगल शासक बाबर ने इस्लाम धर्म की विस्तार नीति के तहत तत्कालीन हिंदू संस्कृतियों से छेड़छाड़ कर मस्जिद का निर्माण गैर इस्लामिक स्ट्रक्चर पर (जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है) किया है।
जहां तक इंसाफ की बात है तो भारत में जब संविधान का निर्माण हुआ भारत एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्य बना तब विवादित जगह पर मस्जिद मौजूद था इस बात को इनकार नहीं किया जा सकता है सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में इस बात का जिक्र भी किया है कि 1949 में गुंबद के नीचे मूर्तियां गैर कानूनी ढंग से रखी गई व 1992 में विवादित ढांचा गिराया जाना कानूनी उल्लंघन था इन सबके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में जो फैसला दिया है वह भले ही सुप्रीम कोर्ट कह रहा हो की फैसला आस्था के आधार पर नहीं दिया जा सकता लेकिन मेरा मानना है की कहीं ना कहीं सुप्रीम कोर्ट ने आस्था को तरजीह दी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के गठन के व संविधान निर्माण के समय से लेकर 1992 तक वहां पर मस्जिद ही था। जिस को सुप्रीम कोर्ट से लेकर सारी दुनिया भली-भांति जानती है इसी के साथ पूरी दुनिया को यह भी पता होना चाहिए की यह विवाद 1949 में नहीं आया वहां पर बाबर द्वारा अगर मस्जिद विवादित स्थल पर ना बनवाया गया होता तो शायद यह विवाद उसी समय से ना चलता आ रहा होता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है की अंग्रेजी सरकार के समय वहां पर मुस्लिमों द्वारा कोई इबादत नहीं होता था हालांकि 1949 के पहले वहां पर केवल शुक्रवार के दिन नमाज पढ़ी जाती थी जबकि हिन्दू वर्ग संभवतः मस्जिद बनने के समय से ही उस स्थान पर राम जन्म भूमि का दावा करते आ रहे हैं तथा उन्होंने तब भी वहां पर दूसरे नज़दीकी स्थान राम चबूतरे व सीता रसोई पर अपने पूजा और अर्चना को जारी हुआ रखा था जब विवादित परिसर पर किसी को पूजा/इबादत करने की इजाजत नहीं थी।
कुछ मुस्लिमों धर्मगुरुओं के द्वारा यह कहा जाना की विवादित जमीन पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती है यह बात धार्मिक ग्रंथों तक ही सीमित है यह बात बाबर द्वारा मस्जिद बनवाए जाने की नीति पर लागू नहीं होता है जैसा कि मैंने ऊपर ही लिखा है की लगभग सभी धर्मों ने दूसरे धर्म की संस्कृतियों को मिटाकर अपने धर्म का विस्तार किया है।
फिलहाल जो भी कुछ हो मेरे हिसाब से सुप्रीम कोर्ट के पास इससे अच्छा कोई फैसला नहीं था यह बात केवल कहने के लिए है कि ये केवल जमीनी विवाद था यह दो समुदायों के आस्था का भी विषय था जिस को ध्यान में रखकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सबसे न्यायोचित फैसला दिया है रही बात विरोध की तो दुनिया का कोई ऐसा विचार नहीं है (वह भले ही कितना भी न्यायोचित व सही हो) जिसका विरोध ना हो, विरोध होना लाजमी है लेकिन मेरे हिसाब से सभी समुदायों को सुप्रीम कोर्ट के इस न्याय को मानना चाहिए, ऐसा नही है कि मुस्लिम पक्ष की हार हुई है 5 एकड़ में अयोध्या में भव्य मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है, रही बात मुस्लिमों नेताओ के द्वारा यह कहे जाने की कि दान की हुई जमीन पर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती तो मेरे हिसाब से आप उस जमीन पर स्कूल अस्पताल व अन्य जनहित के कार्य कर के सारी दुनिया को मिसाल पेश कर सकते हैं वैसे भी देश में मंदिर और मस्जिद की कमी नहीं है फिलहाल देश में अमन चैन व शांति कायम हो, अखंडता हो, एकता हो इसी कामना के साथ मैं आप सभी लोगों का आह्वान करता हूं की देश हित में कोई भी फैसला हो सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए कि फैसला इंसानियत के लिए है या इंसानियत के विरुद्ध है, कोई भी फैसला अगर इंसानियत के लिए उचित है तो उसको मानना चाहिए भले ही उसमें कुछ हमें धार्मिक ठेस पहुंच जाए क्योंकि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
।।जय हिंद जय भारत।।
©सुनील कुमार
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