अतीत

   अतीत
   फरवरी का पहला सप्ताह...मेरे एक मित्र को एक ग्रीटिंग कार्ड की जरूरत थी शायद कोई खास छूट गया था, छोटे से कस्बे में बमुश्किल 5 या 6 दुकानों वाली बाजार में कही ग्रीटिंग कार्ड मिल नही रहा था सब कार्ड जनवरी तक खत्म हो चुके थे, मुश्किल से एक दुकान पर बचे कुछ कार्डों मे से एक कार्ड जो पसंद भी नही था लेना पड़ा मैं खरीदते वक्त अपने मित्र के साथ था मैंने पूछा इतनी क्या जरूरत है तो उसने कहा कि अगर नही मिलता तो बाहर से किसी भी तरह एक कार्ड मांगना पड़ता चलो मिल गया, बात एक कार्ड की नही है उस भावात्मक दोस्त की है जो एक कार्ड न पाने की वजह से नाराज हो गया था जो आज के मशीनी दौर में शायद देखने को मिले, आज मोबाइल का युग है हमने एसएमएस का दौर भी देखा है जो बहुत कम समय मे खत्म हो गया अब शायद ही कोई एसएमएस भेजता हो, ये केवल बैंकिंग व अन्य सूचनाओ तक ही सीमित रह गया है।
   आज के स्मार्टफोन के दौर में मैंने नए साल की पहली सुबह को जब मोबाईल खोला तो मोबाइल पर शुभकामनाओ की बाढ़ सी आ गयी, कई संदेश सालो बात मिले शायद अगली न्यू ईयर के बाद इस बार भी न्यू ईयर पर ही आये थे, मैसेज किसको प्राप्त हो रहे है ये भी भेजने वाले को पता नही, हो सकता है मित्र ने या जिसको आप भेज रहे है उसने नम्बर बदल लिया हो और भेजे गए संदेश किसी और को प्राप्त हो रहे हो लेकिन इससे किसी को कोई लेना देना नही है, इस समय हम पूर्ण रूप से आभासी रिश्ते निभा रहे है और इस स्मार्ट मोबाईल के क्रांतिकारी युग में रिश्तों को मनोरंजन का साधन समझ बैठे है। आज पहले जैसी खुशी नही, पहले जैसी भावना नही, पहले जैसा इंतजार नही...पहले पूरा जनवरी ग्रीटिंग कार्ड का इंतजार रहा करता था जो आज के दौर में अतीत सा लगता है। पहले के सस्ते ग्रीटिंग कार्ड में जो प्रेमभाव था वो आज के महंगे से महंगे मोबाईल के द्वारा भेजे गए संदेश में नही देखने को मिलता, आज सबकुछ बदल चुका है और अभी तो एकाध ग्रीटिंग कार्ड देखने को मिल जा रहे है लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए शायद ग्रीटिंग कार्ड का दौर इतिहास हो...

नववर्ष की शुभकामनाओं सहित...
©सुनील कुमार

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