न्यायपालिका में परिवारवाद

(5 मिनट समय निकालकर जरूर पढ़ें) 

  जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि हमारे देश में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है, जिसकी व्यवस्था संविधान ने की है. परंतु क्या इसको एक स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका कहा जा सकता है, यह हमेशा से एक सवाल रहा है. जनसत्ता में छपी खबर के मुताबिक हाल ही में मुंबई के एक वकील मैथ्यूज जे नेदुमपारा ने National judicial appointment act को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है, उन्होंने अपनी यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक पीठ को सौंपी है, नेदुमपारा ने कहा है कि कॉलेजियम व्यवस्था जिसमे एक जज दूसरे जज को नियुक्त करते हैं न्याय संगत नहीं है।
  विदित हो कि 1990 के कुछ फैसलों से कॉलेजियम सिस्टम बना था. नेदुमपारा का दावा है कि उनका रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट व 13 हाईकोर्ट के 2014 तक के आंकड़ों पर आधारित है, उनका आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट बिना कोई भर्ती नोटिफिकेशन के ही जजों की नियुक्ति करता है जिसमें किसी जज, वकील या न्यायपालिका से जुड़े परिवार के व्यक्ति को ही तरजीह दी जाती है. मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट के 31 जजों में 6 जज पूर्व जजों के बेटे हैं, रिपोर्ट में 13 हाईकोर्ट के 88 जजों के नियुक्तियों का रिपोर्ट है, जिसमें यह जज किसी जज, वकील या न्यायपालिका से जुड़े लोंगो के परिवारवाले है. रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के 33% व हाईकोर्ट के 50%  जज चंद घरानों के बेटे व भतीजे हैं।
  हालांकि केंद्र सरकार ने इसमें सुधार व न्यायपालिका में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम 2014 (99वां संविधान संशोधन) 13 अप्रैल 2015 को अधिसूचित किया था, जिसको सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक परीक्षण के दौरान असंवैधानिक घोषित कर दिया।
  अब सवाल ये उठता है कि देश में सभी संवैधानिक भर्तियों के लिए कोई ना कोई आयोग/तंत्र है तो देश के उच्च न्यायपालिका के भर्ती के लिए कोई आयोग/तंत्र क्यों नहीं है, जो कि देश की स्वतंत्र न्यायपालिका पर सवाल खड़ा करता है, शायद इसी वजह से देश के 80% मध्यम व गरीब लोगों को उचित न्याय नहीं मिल पाता है।

©SUNEEL

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