के0 आसिफ़ का मुगल ए आज़म
आज से ठीक 60 साल पहले 5 अगस्त सन 1960 को एक फ़िल्म रिलीज हुई, रिलीज के लिए मुम्बई के प्रसिद्ध मराठा मंदिर थियेटर को दुल्हन की तरह सजाया गया, टिकटों पर पहली बार फ़िल्म के पोस्टर छापे गए, देखते ही देखते पूरे देश के सिनेमाघरों में दर्शकों की लम्बी लम्बी कतारे लग गयी, पड़ोसी देश पाकिस्तान के भी सिनेमाघर हाउसफुल हो गए, टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग होने लगी, वह कोई और फिल्म नहीं भारतीय सिनेमा के सबसे महानतम फिल्मों में से एक के0 आसिफ निर्देशित मुग़ल-ए-आज़म फिल्म थी।
लोकप्रिय नाटककार "इम्तियाज अली ताज" के प्रसिद्ध नाटक "अनारकली" की पृष्ठभूमि पर "के0 आसिफ" की उपज "मुगल-ए-आजम" फ़िल्म किसी प्रसिद्धि की मोहताज नही है, मुग़ल-ए-आज़म वह कालजयी फिल्म है जिस के बनने की कहानी मात्र पर कई फिल्में बनाई जा सकती हैं और कई किताबें लिखी जा सकती हैं। ऐसा हुआ भी है, इस फिल्म के 60 साल बीत जाने के बाद भी राजकुमार केसवानी नाम के वरिष्ठ पत्रकार व लेखक का किताब "दास्तान ए मुग़ल-ए-आज़म" लिखना इसका जीवंत उदाहरण है। इस फिल्म को महान बनाने में जिसका सर्वाधिक योगदान रहा, उसमें पहला नाम इस फ़िल्म के निर्देशक "करीमुद्दीन आसिफ" का है जिन्होंने अपने 14 साल की कमाई को इसी में खपा दिया, उसके बाद दूसरा नाम इस फिल्म के फाइनेंसर व प्रोड्यूसर "शापूरजी पालोनजी मिस्त्री" ग्रुप के "शापूरजी" का है, जिन्होंने फिल्मों में ना रुचि होते हुए भी इस फिल्म को बनाने के लिए खर्च उठाने का बीड़ा उठाया और जब अमूमन 4 से 5₹ लाख में फिल्म बनकर तैयार हो जाती थी, उस समय इस फिल्म को बनाने के लिए तकरीबन डेढ़ करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए।
आज टेक्नोलॉजी के उत्कर्ष के समय में चाहे जितनी अच्छी फिल्में बना दी जाए, चाहे जितना पैसा लगा दिया जाए और चाहे जितना भव्य फ़िल्म बना दिया जाए परंतु मुग़ल-ए-आज़म का बनाना आज भी फिल्मकारों के लिए एक सपना मात्र है। के0 आसिफ की दीवानगी व फिल्म के प्रोड्यूसर शापूरजी मिस्त्री की जिंदादिली के साथ साथ इस फिल्म के संवाद लेखक कमाल अमरोही, अमानतुल्लाह खान, एहसान रिजवी व वजाहत मिर्जा, गीतकार शकील बदायूनी साहब की शानदार कलमकारी व संगीतकार नौशाद जी के दिन रात के मेहनत व फ़िल्म के मुख्य कलाकार पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला सहित सभी कलाकारों के जीवंत अभिनय की बदौलत भारतीय बॉलीवुड को "मुगल ए आज़म" जैसी महान फ़िल्म मिली।
इस फिल्म को 12 नवंबर 2004 को रंगीन कर पुनः रिलीज किया गया, जिसको नई पीढ़ी ने भी खूब सराहा। शायद बॉलीवुड के इतिहास की यह पहली फिल्म थी जिसको रंगीन किया गया, बॉलीवुड में मात्र दो फिल्में बनाने वाले के0 आसिफ ने "मुग़ल-ए-आज़म" जैसी ऐतिहासिक फ़िल्म बनाकर अपना नाम इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करा लिया। किसी ने क्या खूब कहा था कि मुग़ल-ए-आज़म को केवल आसिफ ही बना सकते हैं। अनारकली के किरदार के रूप में मधुबाला द्वारा बोला गया एक कालजयी डायलॉग जो लोगों के कानों में आज भी गूंज रहा है-
“कांटों को मुरझाने का खौफ़ नहीं होता...!”
©SUNEEL KUMAR
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