भारत में महिला अधिकार

      महिलाओं पर बढ़ रहे अपराध व मौजूदा परिदृश्य में समानता व समता के अधिकारों के बीच महिलाओं को बराबरी के दर्जे के लिए बहस जरूरी हो जाता है, कहीं ना कहीं इस मामले में हम अपने पड़ोसी देशों से भी बहुत पीछे हैं, पाकिस्तान में महिलाओं को राजनीति में 5 फीसद आरक्षण प्राप्त है। पाकिस्तान चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 206 के मुताबिक सभी दलों को महिलाओं को 5 फीसदी टिकट देना अनिवार्य है, अधिनियम यह भी कहता है कि यदि किसी चुनावी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसद से कम हुई तो चुनाव निरस्त माना जाएगा। मुस्लिम शरिया कानून से संचालित देश सऊदी अरब भी महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने लगा है, 2009 में किंग अब्दुल्लाह ने पहली बार वहां की सरकार में पहली महिला मंत्री नूर अल फैज को नियुक्त किया, सऊदी की पहली महिला एथलीट 2012 लंदन ओलंपिक में शामिल हुई, 2013 में महिलाओं को साइकिल व मोटरसाइकिल की सवारी करने की छूट दी गई, 2013 में किंग अब्दुल्ला ने सऊदी की सलाहकार परिषद "शूरा" में 30 महिलाओं को शपथ दिलाई, इसके बाद वहां की संसद "शूरा परिषद" में महिलाओं के नियुक्ति का रास्ता खुल गया। जबकि हमारा देश संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में दुनिया के 193 देशों में 148वें स्थान पर है, हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश व नेपाल रैंकिंग में हम से आगे हैं। 

      हमारे देश में पहली बार एचडी देवगौड़ा सरकार ने 1996 में 81वें संविधान संशोधन के रूप में महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश किया था, इसके बाद ही एचडी देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई और विधेयक गिर गया। 1998 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने महिला विधेयक को पुनः 84वें संविधान संशोधन के रूप में संसद में पेश किया लेकिन यह पास नहीं हो सका, इसके बाद अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने 1999, 2002 व 2003 में भी इस विधेयक को पास कराने की कोशिश की परंतु सफलता हाथ नहीं लगी, हालांकि मनमोहन सरकार ने 2010 में इसे राज्यसभा में तमाम दलों के विरोध के बावजूद भी वाम दलों के समर्थन से पास करा लिया था परंतु लोकसभा में ये फिर अटक गया। चूंकि राज्यसभा स्थाई सदन है इसलिए यह बिल 104वें संविधान संशोधन के रूप में आज भी जिंदा है, अगर मौजूदा सरकार इस विधेयक को लोकसभा में पास कराती है तो यह अधिनियम बन जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि आखिर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में महिलाओं के आरक्षण में राजनीतिक पार्टियां दिलचस्पी क्यों नही ले रही है।

©SUNEEL KUMAR

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