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इतिहास के हांशिए पर फातिमा शेख!

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इतिहास के हाशिए पर फातिमा शेख! ------------------------------------------    जब सावित्रीबाई फुले जी ने सन 1848 में महिलाओं की शिक्षा के लिए पहला स्कूल खोला था उस समय उनके इस स्कूल खोलने में उनकी अहम सहयोगी रही फातिमा शेख आखिर इतिहास के हासिएं पर कैसे चली गई व उनके ही समाज के इतिहासकारों की नजर उनपर क्यों नही पड़ी ये सोचनीय विषय है। तत्कालीन रूढ़िवादी समाज में जब शूद्रों और स्त्रियों को शिक्षा हासिल करना वर्जित था तो सबसे पहले सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ स्त्रियों की शिक्षा के लिए मुहिम की शुरुआत की थी व पुणे में महिलाओं का पहला स्कूल खोला था। समाज की दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण उस समय इस काम के लिए उनका साथ देने वाला कोई नहीं था तब उनका साथ देने के लिए मियां उस्मान शेख व उनकी बहन फातिमा शेख आगे आई थी। सावित्रीबाई फुले जी के साथ फातिमा शेख भी बच्चियों को उनके स्कूल में सहयोगी शिक्षक के तौर पर शिक्षा दिया करती थी। रूढ़िवादी व्यवस्था के कारण जब फुले जी के पिता ने इस काम के कारण उनको अपने घर से निकाल दिया तब फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने ज्योतिबा ...

कैसी गोपनीयता?

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      दुनिया में सबसे ज्यादा यूज किए जाने वाले मैसेजिंग इंस्टेंट प्लेटफार्म व्हाट्सएप की नई सेवा शर्ते आ गई है, सबको इसका नोटिफिकेशन मिलना शुरू हो गया है। कहा जा रहा है कि 8 फरवरी 2021 के बाद इन शर्तों को स्वीकार नही करने वाला व्हाट्सएप नहीं चला पाएगा। मेरे हिसाब से इसमें कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि हम पहले से ही अपने डाटा शेयरिंग अथॉरिटी को फेसबुक समेत कई ऐप को दे चुके हैं। हम अपने मोबाइल में अमूमन जितने भी ऐप इंस्टॉल करते हैं, उनकी नियम व शर्तों को हम बिना पढ़े मान लेते हैं। फिर इसमें बुराई क्या है। हां अगर आपको अपनी गोपनीयता बरकरार रखनी है तो मोबाइल से दूर हो जाइए गोपनीयता बनी रहेगी। मेरे हिसाब से केवल व्हाट्सएप पर गोपनीयता के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाकर हो हल्ला करना ठीक नहीं है। मैंने इसकी शर्तों को मान लिया है वैसे भी मेरे मोबाइल में तमाम ऐसे एप व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं जिनकी शर्तों को मैं पहले से मानता आ रहा हूं। फिर गोपनीयता कहां रह गयी, आखिर सरकार भी तो यही चाहती है कि आपकी गोपनीयता कंपनियों के पास स्टोर रहें और वह जब चाहे उसे मांग ले। और हां व्हाट...

फ़तिमा शेख पर इतिहास मौन क्यों?

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              स्त्री शिक्षा की प्रबल पैरोकार माता सावित्रीबाई फुले की सहयोगी रही प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख पर इतिहास मौन क्यों है, आखिर इतिहासकारों से यह भयंकर चूक क्यों हुई? यह सोचनीय तथ्य है। जब रूढ़िवादी समाज में महिलाओं की शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले ने मुहिम छेड़ा तो उस मुहिम में उनका साथ देने के लिए रूढ़िवादी समाज की बेड़ियों को तोड़कर आगे आने वाली फातिमा शेख पर प्रबुद्ध समाज व इतिहासकारों को शोध करने की जरूरत है। आज हमारे पास फातिमा शेख के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, यह इतिहास की सबसे बड़ी विडंबना है। हालाकि फातिमा शेख के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी महाराष्ट्र सरकार नें अपने उर्दू की बालभारती पुस्तक के पाठ्यक्रम में शामिल किया है।      जब सावित्रीबाई फुले व महात्मा ज्योतिबा फुले ने वंचितों व महिलाओं की शिक्षा के लिए मुहिम छेड़ा तब उन्हें समाज के रूढ़िवादी तबके की उपेक्षा झेलनी पड़ी, उस समय फातिमा शेख के भाई उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में शरण दिया, उस समय वंचितों व स्त्रियों की शिक्षा के लिए क...

भारतभारी

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        जिले के डुमरियागंज तहसील मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित ऐतिहासिक व महाभारत कालीन पौराणिक स्थल "भारतभारी" कोरोना आपदा की वजह से कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगभग सूना सूना सा लग रहा है। हर साल यहां पर पूर्वांचल का ऐतिहासिक मेला लगता था, जो प्रशासन की देख रेख में लगभग 1 हफ्ते तक चलता था, जहां लाखो श्रद्धालू दूर-दूर से आते थे। दूर-दूर से खजले की दुकानें आती थी। बड़ा झूला, थिएटर, मौत का कुआं व डांस पार्टी इत्यादि मेले की शोभा बढ़ाते थे। कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु यहां पर स्थित विशाल व प्राचीन जलकुंड (जिसको सागर भी कहा जाता है) में स्नान कर मंदिर में पूजा अर्चना करते थे। हालांकि अबकी बार कोरोना की वजह से केवल धार्मिक अनुष्ठान के अलावा अन्य किसी गतिविधि की इजाजत नहीं है।       ऐतिहासिक रूप से देखें तो भारतभारी का उल्लेख यूनाइटेड प्राविंसेज आफ अवध एण्ड आगरा के वायलूम 32 वर्ष 1907 के पृष्ट 96,97 में है, जो बताता है कि वर्ष 1875 में भारतभारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में 50 हजार दर्शनार्थियों ने भाग लिया था। बनारस हिंदू व...

एक चर्चित बेमेल शादी/

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      देश की सबसे चर्चित सामाजिक रुप से बेमेल शादियों में से एक आईएएस 2016 बैच की टॉपर टीना डाबी और आईएएस सेकंड टॉपर अतहर हुसैन की शादी बहुत चर्चा में रही थी, जिस पर काफी विवाद भी हुआ था। अब दोनों की शादी टूटने के अंतिम मोड़ पर है। तलाक की अर्जी जयपुर के एक फैमिली कोर्ट में लंबित है। जिसपर सुनवाई होनी है, दोनों जयपुर में पोस्ट है व लंबे समय से अलग रह रहे है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दोनों ने तलाक की अर्जी में साथ ना रहने के लिए अपनी सहमति दे दी है। जिस पर सुनवाई होनी है।        अब मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की ऐसी शादियों को "लव" का नाम देना चाहिए या "जिहाद" का?? टीना डाबी "प्यार" में कामयाब रही या आईएस अतहर "जिहाद" में कामयाब रहे?? मेरे हिसाब से "प्यार" आत्मिक विषय है जो कभी खत्म नहीं हो सकता! जिहाद क्या है इस पर अभी स्टडी कर रहा हूं। लाखों करोड़ों युवाओं को प्रेरणा देने वाले समाज के ऐसे उच्च व बुद्धिजीवी वर्ग के किसी भी कृत्य को मैं निजी नहीं मानता। ऐसी बेमेल शादियां समाज में लिए बेहद खतरनाक हैं। मेरे हिसाब से एक पढ़े-लिखे उच्च समाज...

भारत में महिला अधिकार

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      महिलाओं पर बढ़ रहे अपराध व मौजूदा परिदृश्य में समानता व समता के अधिकारों के बीच महिलाओं को बराबरी के दर्जे के लिए बहस जरूरी हो जाता है, कहीं ना कहीं इस मामले में हम अपने पड़ोसी देशों से भी बहुत पीछे हैं, पाकिस्तान में महिलाओं को राजनीति में 5 फीसद आरक्षण प्राप्त है। पाकिस्तान चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 206 के मुताबिक सभी दलों को महिलाओं को 5 फीसदी टिकट देना अनिवार्य है, अधिनियम यह भी कहता है कि यदि किसी चुनावी क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसद से कम हुई तो चुनाव निरस्त माना जाएगा। मुस्लिम शरिया कानून से संचालित देश सऊदी अरब भी महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने लगा है, 2009 में किंग अब्दुल्लाह ने पहली बार वहां की सरकार में पहली महिला मंत्री नूर अल फैज को नियुक्त किया, सऊदी की पहली महिला एथलीट 2012 लंदन ओलंपिक में शामिल हुई, 2013 में महिलाओं को साइकिल व मोटरसाइकिल की सवारी करने की छूट दी गई, 2013 में किंग अब्दुल्ला ने सऊदी की सलाहकार परिषद "शूरा" में 30 महिलाओं को शपथ दिलाई, इसके बाद वहां की संसद "शूरा परिषद" में महिलाओं के नियुक्ति का रास्ता खु...

के0 आसिफ़ का मुगल ए आज़म

      आज से ठीक 60 साल पहले 5 अगस्त सन 1960 को एक फ़िल्म रिलीज हुई, रिलीज के लिए मुम्बई के प्रसिद्ध मराठा मंदिर थियेटर को दुल्हन की तरह सजाया गया, टिकटों पर पहली बार फ़िल्म के पोस्टर छापे गए, देखते ही देखते पूरे देश के सिनेमाघरों में दर्शकों की लम्बी लम्बी कतारे लग गयी, पड़ोसी देश पाकिस्तान के भी सिनेमाघर हाउसफुल हो गए, टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग होने लगी, वह कोई और फिल्म नहीं भारतीय सिनेमा के सबसे महानतम फिल्मों में से एक के0 आसिफ निर्देशित मुग़ल-ए-आज़म फिल्म थी।      लोकप्रिय नाटककार "इम्तियाज अली ताज" के प्रसिद्ध नाटक "अनारकली" की पृष्ठभूमि पर "के0 आसिफ" की उपज "मुगल-ए-आजम" फ़िल्म किसी प्रसिद्धि की मोहताज नही है, मुग़ल-ए-आज़म वह कालजयी फिल्म है जिस के बनने की कहानी मात्र पर कई फिल्में बनाई जा सकती हैं और कई किताबें लिखी जा सकती हैं। ऐसा हुआ भी है, इस फिल्म के 60 साल बीत जाने के बाद भी राजकुमार केसवानी नाम के वरिष्ठ पत्रकार व लेखक का किताब "दास्तान ए मुग़ल-ए-आज़म" लिखना इसका जीवंत उदाहरण है। इस फिल्म को महान बनाने में जिसका सर्वाधिक योगद...